History of aurangabad bihar | औरंगाबाद बिहार का इतिहास
History of aurangabad bihar |
47 साल पहले बिहार के मानचित्र के स्वरूप में हुआ था बदलाव 26 जनवरी 1973 को गया से कट करबनाथा
47 साल पहले बिहार के मानचित्र के स्वरूप में बदलाव हुआ था . 26 जनवरी 1973 को गणतंत्र दिवस के दिन गया से कटकर औरंगाबाद और नवादा जिला बना .
पहले ये दोनों भू - भाग गया जिले के अनुमंडल हुआ करते थे . 108 वर्षों तक अनुमंडल रहने के बाद इन्हें जिले का दर्जा प्राप्त हुआ , औरंगाबाद को जिला बनाने से संबंधित अधिसूचना 19 जनवरी 1973 को ही जारी कर दी गयी थी . तत्कालीन राज्यपाल देवकांत बरूआ ने बिहार गजट के माध्यम से अधिसूचना जारी की थी . राज्यपाल ने अधिसूचना जारी कर औरंगाबाद को नया जिला बनाये जाने की घोषणा की थी . कृष्ण अर्जुन हरिहर सुब्रमण्यम औरंगाबाद के पहले डीएम थे .
इसके अलावा जिले के पहले एसपी एसएसएम कौर व पहले डिस्ट्रिक जज जयपति सिन्हा थे .
पहले ये दोनों भू - भाग गया जिले के अनुमंडल हुआ करते थे . 108 वर्षों तक अनुमंडल रहने के बाद इन्हें जिले का दर्जा प्राप्त हुआ , औरंगाबाद को जिला बनाने से संबंधित अधिसूचना 19 जनवरी 1973 को ही जारी कर दी गयी थी . तत्कालीन राज्यपाल देवकांत बरूआ ने बिहार गजट के माध्यम से अधिसूचना जारी की थी . राज्यपाल ने अधिसूचना जारी कर औरंगाबाद को नया जिला बनाये जाने की घोषणा की थी . कृष्ण अर्जुन हरिहर सुब्रमण्यम औरंगाबाद के पहले डीएम थे .
इसके अलावा जिले के पहले एसपी एसएसएम कौर व पहले डिस्ट्रिक जज जयपति सिन्हा थे .
जिले की डेमोग्राफी : औरंगाबाद का क्षेत्रफल 3389 वर्ग किलोमीटर है . यहां दो अनुमंडल , 11 ब्लॉक , 32 थाना और 1884 गांव है . 2011 की जनगणना के अनुसार जिले की जनसंख्या 2540073 है . इनमें से 1318684 पुरुष व 1221389 महिलाएं है . जिले की साक्षरता दर 70 . 32 , पुरुष साक्षरता दर 80 . 11 व महिला साक्षरता दर 59 . 71 है . जिले का लिंग अनुपात प्रति एक हजार 926 है . हालांकि जब जिले का गठन हुआ था तो उस वक्त जिले की आबादी
दस लाख 15 हजार थी . जिले में 15 थाने हुआ करते थे
औरंगाबाद का नाम पहले नौरंगा हुआ करता था . 17वीं सदी में औरंगजेब के बिहार में प्रथम गवर्नर दाउद खां ने नौरंगा का नाम औरंगाबाद किया . सच्चिदानंद सिन्हा कॉलेज के इतिहास के पूर्व प्रोफेसर टीएन सिन्हा बताते है कि ये किदवंती है , किताबों में इसका सटीक उल्लेख नहीं है . दाउदनगर का नाम पहले सिलौटा बखोरा था , जिसे दाउद खां ने अपने नाम पर दाउदनगर किया . प्रोफेसर टीएन सिन्हा बताते है कि इतिहास के पन्नों को पलटें तो औरंगाबाद शुरू से ही सामाजिक और किसान आंदोलन का गढ़ था .
नक्सलवाद से मिला छुटकारा
जिला के स्थापना के बाद नक्सलवाद जिले के लिए अभिशाप था . यहां दलेलचक बधौरा , मियांपुर , छेछानी , दरमियां , परसडीह जैसे कई बड़े नरसंहार हुए . 1987 में हुए दलेलचक बघौरा कांड में 54 लोगों को मौत की घाट उतार दिया गया .
औरंगाबाद सदर औद्योगिक औरसंचार क्रांतिने बदली तस्वीर
1973 में जब औरंगाबाद जिला बना तो उस वक्त यह क्षेत्र काफी पिछड़ा हुआ था . शिक्षा , स्वास्थ्य सुरक्षा , संचार । हर क्षेत्र में अभाव का दौर था . आज तस्वीर बदल चुकी है . स्थापना काल में जिले के लगभग 50 गांवों में बिजली पहुंचती थी . आज पूरा जिला बिजली की सुविधा से निहाल है . उस दौर में संचार की कोई साधन नहीं थे . डाक से सूचनाओं का अदान प्रदान होता था . आज हर व्यक्ति के हाथ में स्मार्ट फोन मौजूद है . सड़क की स्थिति भी दयनीय थी , लेकिन अब चकाचक सड़कों ने यात्रा को आसान बना दिया है . उद्योग
के क्षेत्र में जिले ने काफी विकास किया . बीआरबीसीएल , एनपीजीसी , श्रीसीमेंट प्लाट ने जिले को तरक्की दी . हजारों लोगों को रोजगार मिला . कई बड़े मॉल , होटल , रेस्टूरेंट , रिसोर्ट खुले . शिक्षा के क्षेत्र में सच्चिदानंद सिन्हा कॉलेज व यादव कॉलेज स्थापना के समय थे जहां ग्रेजुएशन तक की पढ़ाई होती थी . आज जिले में केंद्रीय विद्यालय , जवाहर नवोदय के अलावे 2366 सरकारी विद्यालय हैं . करीब चार सौ हाईफाई प्राइवेट स्कूल के अलावे इंजीनियरिंग कॉलेज भी है और जल्द ही मेडिकल कॉलेज की सौगात भी मिलने वाली है .
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